Sabse Pehli Cycle Mein Kitne Pedals The: साइकिल आज हमारी जिंदगी का एक अहम हिस्सा है। चाहे फिटनेस हो, रोज़मर्रा का सफर हो या फिर सैर-सपाटा, साइकिल हर उम्र के लोगों को पसंद आती है।
लेकिन क्या आपने कभी सोचा कि दुनिया की सबसे पहली साइकिल कैसी थी और उसमें कितने पेडल थे? इस सवाल का जवाब जानने के लिए हमें साइकिल के इतिहास में थोड़ा पीछे जाना होगा।
तो चलिए जानते है की साइकिल की खोज किसने की और दुनिया की सबसे पहले साइकिल कैसे दिस और उसमे कितने पेडल्स थे
साइकिल का जन्म: पहली साइकिल का इतिहास
सबसे पहली साइकिल का आविष्कार 1817 में जर्मनी के कार्ल ड्रैस (Karl Drais) ने किया था। उस समय इसे “ड्रैसिन“ या “लॉफमाशीन” (रनिंग मशीन) कहा जाता था।
अंग्रेजी में इसे “वेलोसिपेड” या “डैंडी हॉर्स” के नाम से भी जाना गया। यह साइकिल लकड़ी की बनी थी, जिसमें दो पहिए, एक हैंडल और एक सीट थी। लेकिन इसमें सबसे खास बात थी कि इसमें कोई पेडल नहीं था।

जी हां, सही पढ़ा आपने! सुनकर हैरान होती है लेकिन यह सच है की दुनिया की सबसे पहली साइकिल में कोई पेडल नहीं थे। इसे चलाने के लिए राइडर को अपने पैरों से जमीन को धक्का देना पड़ता था।
ड्रैसिन को चलाने का तरीका कुछ-कुछ स्कूटर जैसा था, जहां पैरों से जमीन पर धक्का देकर गति दी जाती थी। यह साइकिल आज की साइकिलों से बहुत अलग थी और इसे चलाना भी आज की साइकिल के मुकाबले काफी मुश्किल था।
पेडल्स का आगमन: कब और कैसे?
साइकिल में पेडल्स की शुरुआत 1860 के दशक में हुई। फ्रांस के पियरे मिशो (Pierre Michaux) और उनके बेटे अर्नेस्ट मिशो ने 1861 में पहली बार साइकिल में पेडल्स जोड़े।
इस नई साइकिल को “वेलोसिपेड“ कहा जाता था, और इसमें दो पेडल थे जो सामने वाले पहिए (फ्रंट व्हील) से जुड़े थे। ये पेडल्स डायरेक्ट ड्राइव सिस्टम पर काम करते थे, यानी पेडल मारने से सामने का पहिया सीधे घूमता था।

इस नई साइकिल को “बोनशेकर” (Boneshaker) भी कहा जाता था, क्योंकि इसके लकड़ी के फ्रेम और लोहे के पहियों की वजह से यह बहुत हिलती थी।
हालांकि उस समय इसमें दो पेडल्स का होना एक बड़ा बदलाव था, क्योंकि अब राइडर को जमीन पर पैर मारने की जरूरत नहीं थी। यह साइकिल के इतिहास में एक क्रांतिकारी कदम था।
साइकिल के डिज़ाइन में बदलाव
1870 के दशक में पेनी-फारदिंग साइकिल आई, जिसमें सामने का पहिया बहुत बड़ा और पीछे का पहिया छोटा था। इसमें भी दो पेडल ही थे, जो सामने के बड़े पहिए से जुड़े थे। हालांकि, ये साइकिल चलाना खतरनाक था, क्योंकि ऊंचाई ज्यादा होने से गिरने का डर रहता था।
इसके बाद साइकिल में और सुधार करके 1880 के दशक में सेफ्टी बाइसिकिल बनाई गई , जो आज की साइकिलों जैसी थी। इसमें चेन और गियर्स का इस्तेमाल किया गया था और इसमे दो पेडल्स का सिस्टम लगाया गया था जो आज तक कायम है। आधुनिक साइकिलों में भी दो पेडल्स ही होते हैं, जो चेन के जरिए पिछले पहिए को चलाते हैं।
सबसे पहली साइकिल में पेडल्स क्यों नहीं थे?
सबसे पहली साइकिल (ड्रैसिन) में पेडल्स न होने की वजह थी तकनीकी सीमाएं। उस समय मकैनिकल इंजीनियरिंग इतनी उन्नत नहीं थी कि पेडल्स और चेन सिस्टम बनाया जा सके।

कार्ल ड्रैस का मकसद एक ऐसी मशीन बनाना था जो घोड़ों की जगह ले सके और आसानी से चलाई जा सके। इसलिए उन्होंने साधारण डिज़ाइन चुना, जिसमें राइडर अपने पैरों से गति देता था।
आज की साइकिलें और पेडल्स
आज की साइकिलों में दो पेडल्स स्टैंडर्ड हैं। चाहे रेसिंग साइकिल हो, माउंटेन बाइक हो या सिटी साइकिल, सभी में दो पेडल्स होते हैं। हालांकि कुछ आधुनिक इलेक्ट्रिक साइकिलों में पेडल्स का इस्तेमाल कम होता है, लेकिन फिर भी वे मौजूद रहते हैं। पेडल्स ने साइकिल को और कुशल बनाया, जिससे लंबी दूरी तय करना आसान हो गया।
निष्कर्ष
तो, सवाल का जवाब है – सबसे पहली साइकिल में कोई पेडल नहीं था। कार्ल ड्रैस की ड्रैसिन साइकिल (1817) में राइडर को पैरों से जमीन धक्का देनी पड़ती थी।
पेडल्स की शुरुआत 1861 में पियरे मिशो ने की, और तब से दो पेडल्स साइकिल का स्टैंडर्ड हिस्सा बन गए। साइकिल का ये इतिहास हमें बताता है कि कैसे छोटे-छोटे आविष्कारों ने हमारी जिंदगी बदल दी।
अगर आपको साइकिल के इतिहास या इसके डिज़ाइन के बारे में और जानना है, तो कमेंट्स में बताएं। क्या आप साइकिल चलाते हैं? अपनी कहानी शेयर करें!
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